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कविता

युवा जंगल

अशोक वाजपेयी


एक युवा जंगल मुझे,
अपनी हरी पत्तियों से बुलाता है।
मेरी शिराओं में हरा रक्त बहने लगा है
आँखों में हरी परछाइयाँ फिसलती हैं
कंधों पर एक हरा आकाश ठहरा है
होंठ मेरे एक हरे गान में काँपते हैं :

       मैं नहीं हूँ और कुछ
       बस एक हरा पेड़ हूँ
       – हरी पत्तियों की एक दीप्त रचना!
             ओ युवा जंगल
             बुलाते हो
             आता हूँ
             एक हरे बसंत में डूबा हुआ
             आऽताऽ हूँ...।

 


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